हिन्दुस्तान के शेर बिग्रेडियर मो. उस्मान

S.Khan July 03, 2017 
ब्रिगेडियर मो. उस्मान (जन्म 15 जुलाई 1912 आज़मगढ़, मृत्यु (शहीद) 3 जुलाई 1948) भारतीय सेना के उच्च अधिकारी थे, जो भारत और पाकिस्तान के प्रथम युद्ध (1947-48) में शहीद हुए। उस्मान 'नौशेरा के शेर के' रूप में ज्यादा जाने जाते हैं। वह भारतीय सेना के सर्वाधिक प्रतिष्ठित और साहसी सैनिकों में से एक थे, जिन्होंने जम्मू में नौशेरा के समीप झांगर में मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राण गंवा दिए थे। वह भारतीय सैन्य अधिकारियों के उस शुरुआती बैच में शामिल थे, जिनका प्रशिक्षण ब्रिटेन में हुआ।


द्वितीय विश्व युद्ध में अपने नेतृत्व के लिए प्रशंसा पाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान उस 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे, जिसने नौशेरा में जीत हासिल की। मो. उस्मान भारत की आजादी के महज 11 महीने बाद पाकिस्तानी घुसपैठियों से जंग करते हुए शहीद हो गए। उल्लेखनीय है, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनकी कैबिनेट के सहयोगी जुलाई 1948 में उनकी राजकीय अंत्येष्टि में शामिल हुए। 

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में एक गांव है बीबीपुर। यहां के खान बहादुर मोहम्मद फारुख, जो पुलिस अधिकारी थे और बनारस के कोतवाल भी रहे। उन्हीं के घर बेटे का  जन्म हुआ। नाम रखा गया मो. उस्मान। हरिश्चंद्र भाई स्कूल में पढ़ाई हुई। सेना में जाने का मन बनाया और ब्रिटेन कीरायल मिलिटरी एकेडमी, सैंडहस्ट में चयनित हुए। भारत से चयनित 10 कैडेटों में वे एक थे। मोहम्मद उस्मान को 23 वर्ष की आयु में बलूच रेजीमेंट में नौकरी मिली। इधर, भारत-पाक का बंटवारा हो रहा था। पाकिस्तानी नेताओं मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खान ने इस्लाम और मुसलमान होने की दुहाई दी। पाकिस्तानी सेना में शामिल हो जाओ, लालच दिया, नियम तोड़ कर (आउट ऑफ टर्न) पाकिस्तानी सेना का चीफ बना दिया जाएगा। पर, वतनपरस्त उस्मान ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। बलूच रेजीमेंट बंटवारे में पाकिस्तानी सेना के हिस्से चली गई। उस्मान डोगरा रेजीमेंट में आ गए। 

दोनों देशों में अघोषित लड़ाई चल रही थी। पाकिस्तान भारत में घुसपैठ करा रहा था। कश्मीर घाटी और जम्मू तक अशांत था। उस्मान पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे। उनकी झनगड़ में तैनाती थी। झनगड़ का पाक के लिए सामरिक महत्व था। मीरपुर और कोटली से सड़कें आकर यहीं मिलती थीं। 25 दिसंबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना ने झनगड़ को कब्जे में ले लिया। लेफ्टिनेंट जनरल केएम करिअप्पा तब वेस्टर्न आर्मी कमांडर थे। उन्होंने जम्मू को अपनी कमान का हेडक्वार्टर बनाया। लक्ष्य था झनगड़ और पुंछ पर कब्जा करना। और मार्च, 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान की वीरता, नेतृत्व व पराक्रम से झनगड़ भारत के कब्जे में आ गया। उन्हें नौशेरा का शेर भी कहा जाता है। तब पाक की सेना के हजार जवान मरे थे और इतने ही घायल हुए थे, जबकि भारत के 102 घायल हुए थे और 36 जवान शहीद हुए थे।

पाकिस्तानी सेना झनगड़ के छिन जाने और अपने सैनिकों के मारे जाने से परेशान थी। उसने घोषणा कर दी कि जो भी उस्मान का सिर कलम कर लाएगा, उसे 50 हजार रुपए दिए जायेंगे। इधर, पाक लगातार झनगड़ पर हमले करता रहा। अपनी बहादुरी के कारण पाकिस्तानी सेना की आंखों की किरकिरी बन चुके थे उस्मान। पाक सेना घात में बैठी थी। 3 जुलाई, 1948 की शाम, पौने छह बजे होंगे कि ब्रिगेडियर उस्मान जैसे ही अपने टेंट से बाहर निकले कि उन पर 25 पाउंड का गोला पाक सेना ने दाग दिया। उनके अंतिम शब्द थे, हम तो जा रहे हैं, पर जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न होने पाए। 

पहले अघोषित भारत-पाक युद्ध (1947-48) में शहीद होने वाले वे पहले उच्च सैन्य अधिकारी थे। राजकीय सम्मान के साथ उन्हें जामिया मिलिया इसलामिया कब्रगाह, नई दिल्ली में दफनाया गया। अंतिम यात्रा में गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद और शेख अब्दुल्ला भी शामिल हुए। 

मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। उस्मान अलग ही मिट्टी के बने थे। वह 12 दिन और जिए होते तो 36वां जन्मदिन मनाते। उन्होंने शादी नहीं की थी। अपने वेतन का हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे। नौशेरा में 158 अनाथ बच्चे पाए गए थे। उनकी देखभाल करते, उनको पढ़ाते-लिखाते थे। 

गाजीपुर के वरिष्ठ साहित्यकार उबैदुर्रहमान अपने एक लेख में लिखते हैं कि, शहीदों में अजीम शहीद दर्जा पाने वाले ब्रिगेडियर उस्मान की हस्ती किसी परिचय की मोहताज नहीं है। उन्होंने पाकिस्तान सीमा पर देश की हिफाजत करते हुए अपनी जान न्यौछावर की। ब्रिगेडियर उस्मान नौशेरा घाटी में अपने फौजी टेट के बाहर खड़े थे कि पाकिस्तानी गोलाबारी से एक गोला उनके पास आकर फटा और तीन जुलाई 1948 को अंतिम सांस ली।

द्वितीय विश्वयुद्ध में उन्हें अपनी फौज के साथ लडऩे का मौका मिला और अपनी हिम्मत और बहादुरी के जौहर दिखाए। देश के विभाजन के बाद वह बल्लौच रेजीमेंट से निकल कर गोरखा रेजीमेंट में दाखिल हो गए। देश प्रेम उनके अंदर कूट-कूट कर भरा था। उन्होंने साफ कह दिया कि जब तक जिंदगी है हिन्दुस्तान की हिफाजत करता रहूंगा। इस पर तिलमिला कर पाकिस्तान सरकार ने इन पर 50 हजार रुपये का इनाम रखा था। उन्हें 77 पैरा ब्रिगेडियर कमांडर बना कर नौशेरवा, पुंछ, राजौरी, मीरपुर, अखनूर, बैरीपत्तन आदि क्षेत्रों की हिफाजत के लिए भेजा गया, जहां स्थिति काफी गंभीर बनी हुई थी। इन्हें इस बीच कई बाधाओं से गुजरना पड़ा, लेकिन तीन महीने के अभियान में वह कामयाब हुए और नौशेरा घाटी को आजाद कराया। उन्हीं की कुर्बानी का नतीजा है कि आज भी जम्मू-कश्मीर की घाटियां भारत का अभिन्न अंग है।

खास बात...
मोहम्मद उस्मान की अंतिम यात्रा में गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद और शेख अब्दुल्ला भी शामिल हुए थे।

एक नजर...
पूरा नाम-ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान
अन्य नाम-नौशेरा का शेर
जन्म-15 जुलाई 1912
जन्मभूमि-आजमगढ़
मृत्यु-3 जुलाई 1948
मृत्यु स्थान-जम्मू
अभिभावक बहादुर मो. फारुख (पिता)
कर्म भूमि-भारत
कर्म-क्षेत्र-भारतीय सेना में ब्रिगेडियर
पुरस्कार-उपाधि-महावीर चक्र
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